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रमादान पावनिक अमूल्य महत्त्व आ लाभ

इस्लाम धर्मावलम्वीसभक ‘पवित्र पावनि रमजान’ एखन चलि रहल अछि। फागुन २८ गते सोम दिनक (मार्च ११) साँझक चन्द्रमाक दर्शन पश्चात पावनि शुरू भेल रहऽ तथा चैत्त २८ (अप्रील १०) के विधिवत् समापन होएत।

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रमादान पावनि तीस दिन अर्थात एक महिनाधरि निरन्तर रूपेँ मनाओल जाइछ। एहि पावनिमे दिनभरि अर्थात भोरसँ लऽकऽ साँझधरि रोजा (उपवास) राखल जाइछ तथा तरावी अर्थात विषेश नमाज पढ़ल जाइछ। पावनिक अन्तिम दिन सूर्य डुबला पश्चात इफ्तार (साँझक खाना) खाए ई पावनि विधिवत रूपेँ समाप्त होइछ। हरेक तीन साल बाद ई समय परिवर्तन होइत रहैछ।

‘रमजान अल मुवारक’ पावनिक आगमनसँ मिथिला लगायत विश्वभरिके मुसलमानसभ हर्षित एवं खुशी होइत छथि। एहि उल्लासपूर्ण पावनिक प्रतिक्षा हिनकासभके सालभरिसँ रहैत छनि। किए की, ई पुरा महिना उपवास-साधना कए कल्याण, पुण्य, उपकार, दया, अनुकम्पा, शुभकर्म, मेलमिलाप, एवं नरकसँ मुक्तिक लेल परमपिता अल्लाहसँ आशिर्वाद प्राप्त करहिबला महिनाक रूपमे मानाओल जाइछ।

कहल जाइछ जे एहि महिनामे “नरकक केबार बन्द कऽ स्वर्गक केबार खोलल जाइछ, एहि कारणेँ जे व्रतीसभ नीकसँ साधना-उपासना-प्रार्थना कऽ रमादान पावनिसँ अधिक लाभान्वित भऽ सकैए।” सहज भावे देखल जाए तँ बहुत गहिंरगर ओ महत्वपूर्ण अर्थ एहिमे समाहित अछि; एहि पृथ्वीपर ओ अनन्त आकाशमे कतौ नइँ तँ स्वर्ग छै, नइँ तँ नर्क। स्वर्ग-नर्क तँ मानवीय संवेदना ओ अनुभूति अछि। एकटा माय-बाबू जखन अपन सन्तानके केहनो प्रतिकूल एवं विषद समयमे सत्य-कर्म-धर्मक बाटपर चलैत देखैत छथि, आ तइयो खुशी आ सुखी देखैत छथि तँ हुनकासभक मन-मस्तिष्क, हृदय ओ अन्तरात्मामे जे सुख-सन्तुष्टी प्रस्फुटन होइछ, वयह तँ स्वर्गीय सुख ओ अनुभूति अछि। आ तहिना, अपन माय-बाबू, दादी-बाबाकेँ खुशी-सुखी एवं सन्तुष्ट देखब सन्तानक लेल स्वर्गीय आनन्द भऽ सकैछ, …। मुदा, यदि वहए माय-बाबू जखन अपन सन्तानके गलत-कुलत एवं अपराध कर्म तरफ गेल देखैत छथि तँ जे आत्मग्लानि, क्षोभ, पश्चाताप हुनका सभक मन-मस्तिष्कमे उद्देलित होइछ, वयह तऽ नारकीय अनुभुती अछि। कोनो सद्कर्म वा अपराध कर्मसँ मानव स्वर्ग-नर्कक अनुभुती एहिठाम सशरीर करैत अछि।

तेँ केओ मनूक्ख यदि कोनो कारणसँ गलत, पाप, अपराध एवं दुर्गूणपूर्ण बाट पर चलि गेल छै तँ ओकरा लेल ई रमजान पावनिबला महिना स्वर्गक केबाड़ खुलऽवला अमूल्य ओ बहुत उपलब्धिपूर्ण व्रत ओ महिना भऽ सकैछ यदि उक्त व्यक्ति अपन मन-मस्तिष्क ओ अन्तरात्मामे सही बाट पर चलबाक लेल दृढ संकल्प लऽ रमादान पावनि विधिपूर्वक करथु तऽ। आ जे लोक पहिनेसँ सद्गती ओ सद्मार्गके प्राप्त छथि, ओ चेतनसील प्रबुद्ध लोकनि समाज ओ मानव कल्याणक लेल मार्गदर्शक रूपमे स्वयंके आओर विकसित कऽ सकैत छथि।

साकारात्मक विचार ओ कर्म दिस सदैव अग्रसर रहबाक लेल दिनभरि निराहार एवं निर्जला रहि सूर्यास्त पश्चात परमात्मा ओ अल्लाहसँ सद्गती ओ सद्मार्गक लेल प्रार्थना पश्चात भोजन करब निश्चितेँ एहिसँ ब्रतिसभक मन-मस्तिष्क-हृदयमे साकारात्मक उर्जाक संचार ओ सन्तुष्टि होइछ। तेँ ई पर्व मात्र मुस्लिम समुदायसभक लेल नइँ भऽ सम्पूर्ण मानव समुदायक लेल उपयोगी ओ महत्वपूर्ण अछि। मौसम एवं वातावरणक अनुकूलता सेहो एहि पावनिमे सहयोगी होइछ।

कारण, मिथिलामे फागुन-चैत महिनामे जाढ़क समय अन्तिम अवस्थामे होइछ, आ गर्मी शुरू होबए लागल रहैछ। खेतबारीसभमे गहुम, रब्बी-राइसब पाकऽ लागल अवस्थामे आबि गेल रहैछ। तेँ वातावरणक हिसाबेँ सेहो एहि पावनि लेल ई महिना बहुत अनुकूल एवं सहयोगी अछि।

स्वास्थ्यक दृष्टिएँ सेहो रमादान पावनिकेँ महत्वपूर्ण रूपेँ उपयोग कएल जा सकैछ। सामान्यतः मनूक्खक उमेर जखन चालीस-पैंतालीस पार होइछ तँ शरीरक तौल अनावश्यक रूपेँ बढ़ैत छै, आ अधिकांश लोकमे विभिन्न तरहक शारीरिक जटिलता एवं दिर्घ रोगसबसँ जेना – ब्लडप्रेशर (उच्च रक्तचाप), डाइबिटीज (मधूमेह), थाइराइड (अवटूग्रंथि) आदि सभसँ ग्रसित होइ लगैछ। ओ लोकसभ यदि डाक्टर एवं चिकित्सक सल्लाह अनुसार एक महिना धरि रमजान पावनिक उपवास करथु आ साँझमे प्रसाद रूपेँ शाकाहारी भोजन करथु तँ स्वास्थ्यमे बहुत साकारात्मक सुधार एवं लाभ भऽ सकैछ।

एहु तरहेँ रमादान पावनि मात्र मुस्लिम समुदायसभक नइँ भऽ सम्पूर्ण मानव समुदायक लेल महत्वपूर्ण एवं उपयोगी अछि। मलेसियामे रमजान पावनिकेँ ‘रमादान’ पावनि सेहो कहल जाइछ।

एहि पवित्र पावनिक महिनामे मुस्लिम समुदायमे सँ पढ़ल-लिखल, अनुभवी ओ कर्तव्यनिष्ठ अगुवा ओ प्रबुद्ध वर्गसभक दायित्व कनि बेसी होयबाक अति आवश्यक देखल जाइछ – समाजमे साकारात्मक विकासक लेल।

मिथिलाक मैथिली भाषा, साहित्य, संस्कृति, व्यवसाय, रोजगार, कृषि लगायत आओर विषयसभक व्यवसायिक विकास एवं समृद्धिक लेल व्यापक रूपेँ छलफल होयबाक चाही आ ओहि आधारपर ठोस एवं आवश्यक कार्ययोजना बनयबाक चाही एहि पावनि-उपवासक महिनामे। एहि तरहक छलफल ओ कार्ययोजनामे अठारह-बीस वर्षक युवासभक सहभागिता सेहो अनिवार्य रूपेँ करयबाक चाही।

तखने दस-बीस वर्षक बाद ओहि युवासभक अनुभव अगुवासभक रूपमे सोकाज लागत एवं समाजक हरेक समुदायक लेल सुखद फलदायी होएत। उक्त छलफल ओ सामुदायिक कार्ययोजनामे मुस्लिम समुदायमे आर्थिक रूपेँ विपन्न रहल घर-परिवार सभके सहयोगक लेल विशेष योजना राखब ताहि पर विशेष ध्यान होयबाक चाही। हरेक समुदाय एखुनका समयमे आर्थिक रूपेँ सबल भऽ रहल छै, लेकिन तइयो हरेक समुदायमे किछु घर-परिवारसब सदैत दिनराति मेहनत-मजदूरी कएलाक बावजूदो आर्थिक रूपेँ बहुत कमजोरे रहि जाइ छथि, एहन लोकसब गर्मीमे रौद आ गर्मीसँ, बर्षा-बूनीसँ, जाढ़मे ठण्डी आ जाढ़सँ बचबाक लेल उचित घर-द्वारके व्यवस्था नइँ कऽ पबै छथि, उचित लत्ता-कपड़ा, ओढ़ना-बिछौनाक व्यवस्था नइँ कऽ पबै छथि।

एहन घर-परिवारमे बच्चा-बुच्चीसँ लऽ कऽ बुढ़ धरिके आवश्यक लत्ता-कपड़ा एवं आवश्यक पोषणयुक्त खानाक अभाव सदैव रहैछ। घरमे केओ दिर्घ रोगसँ जुझि रहल छथि तँ हुनका लेल अति आवश्यक औषधिक व्यवस्था करब आओर बड़ दूरूह होइछ। आ बच्चा-बुच्चीसभक लेल आवश्यक आधारभूत शिक्षा तँ बहुत दूरके बात भेल रहै छै। तेँ एहने घर-परिवार ओ लोकसबकेँ समाज ओ राज्यक धूर्त ओ दूषित मानसिकताबला तथाकथित अगुवा नेतासब गलत रूपेँ अपन कपटपूर्ण राजनीतिक स्वार्थ लेल प्रयोग करैत रहि जाइ छै, आ पढ़ल-लिखल, अनुभवी ओ साकारात्मक सोच-विचार-व्यवहारबला लोकसब अपन-अपन काम-काजमे व्यस्त रहि स्वयंकेँ सिमीत कऽ लैत छथि।

तेँ यदि समाजक हरेक वर्गके सहभागिता कराइबकऽ समाजमे साकारात्मक विकास एवं समृद्धिक लेल आवश्यक कार्ययोजना बनाओल जाइछ तऽ कम पढ़ल-लिखल अगुवासभक नेतृत्वमे सेहो बहुत साकारात्मक काजसब भऽ सकैछ एवं हुनका सभमे सेहो दुरगामी सोँच-विचार-व्यवहार विकसित भऽ सकैछ। सबकिछु राज्य ओ सरकारे पर छोड़ि देलासँ समाजमे आओर बेसी जटिलता एवं अराजकता व्याप्त भऽ जाइछ।

तेँ मिथिलाक हरेक समुदायके एहि तरहक छलफल ओ कार्ययोजनाक बारेमे बात-विचार ओ विमर्श होइ, तऽ बहुत फलदायी भऽ सकैछ। दिनभरि निराहार एवं निर्जला रहि कएल जाए बला एहि पावनिक अवधीभरि व्रतीसभक लेल सरकार द्वारा अतिरिक्त विदाक व्यवस्था कएल जयबाक चाही, जाहिसँ व्रती लोकनिसभ एहि पावनि भरिपोख लाभ लऽ सकैए।

■ की अछि रमजान / रमादान पावनि ?

रमजान पावनि इस्लाम धर्मावलम्बीसभक लेल एक महिना धरि मनाओल जायबला पर्व अछि। एहि पवित्र पावनिमे अपन मन-मस्तिष्क एवं स्वास्थ्यकेँ परिशुद्ध करब, स्वयंके एवं अपन परिवार लगाइत अपन समुदायके सेहो सही बाटपर चलबाक लेल प्रेरित करब तथा परोपकार कए पुण्य अर्जित करबाक समयक रूपमे मनाओल जाइछ। एहि पावनिमे भोरे सूर्य उगलाक पश्चात एवं सूर्य डूमब धरि अन्न-जल ग्रहण नइँ कए उपासे रहबाक चलन अछि, जेकरा रोजा सेहो कहल जाइछ। सुर्य उदयसँ पहिने फजरके अजानके पश्चात खानपिन वर्जित अछि। सूर्य अस्तएला पश्चात सामूहिक रूपेँ इफ्तार अर्थात साँझको खाना खाएल जाइछ। इफ्तारीक लेल खजुर एवं पानिकेँ उत्तम मानल जाइछ। सकभरि बिना कोनो किन्तु परन्तुके रोजा रखबाक प्रचलन अछि। केओ बिना कोनो विशेष कारणवश उपवास तोड़ैत छथि तँ ओकरा बहुत गलत मानल जाइछ। मुदा शारीरिक रूपेँ अशक्त एवं बाल/बालिकासभक लेल उपवास करब अनिवार्य नइँ अछि।

सामान्यतः दिनमे पाँच बेर नमाज पढ़ल जाइछ तथा राति ८ बजेसँ तरावी अर्थात् विषेश नमाज पढ़ल जाइछ। सङ्गहि धर्मगुरु हाफिज द्वारा कुरान वाचन एवं व्रतीसभ द्वारा श्रवण कएल जाइछ। एहि तरहेँ ई विशेष पावनी विधिवत कएलासँ विशेष पुण्य प्राप्त होइत अछि। एहि पर्वकेँ इस्लाम धर्मावलम्बीसभ अल्लाह ओ परमात्माक आदेशक रूपमे मनाओल करैत छथि।

रमादान पावनिसँ सम्बन्धित आओर बातसब छै। लेकिन मुख्य जे बात छै, ओ छै उपवास करब तथा ओहि उपवाससँ लाभान्वित होएब। उपवासक अवस्थामे मनुष्यके जाहि तरहेँ जे समय सहज बुझाए, ओइ समयमे निश्चिंत ओ सहज भावे किछु देर वा दस-बीस मिनट धरि बसिकऽ अपन सोच, विचार, व्यवहारके स्वयं सम्यक रूपेँ देख सकैत छथि।

अपन विगतके बात, विचार, व्यवहार ओ कर्मसभमे भेल कमी-कमजोरी एवं प्रगतिसबके बारेमे सेहो सोंचि सकैए, नीकसँ बुझि सकैए तथा अगामी दिनमे स्वयंके मन-मस्तिष्क ओ हृदयमे केहन सोच-विचार ओ व्यवहारके सृजन करब, जाहिसँ स्वयं तथा अपन समाज, अपन देश लगाइत पुरा मानव समुदाय ओ सभ्यता लेल उचित होएत आ सर्वस्विकार्य होएत ताहि विषय-वस्तुसभ पर मौलिक चिन्तन-मनन करब, आ स्वयंके जीवन-व्यवहारमे उतारब तखने रमादान पावनिक उपवास ओ अनिवार्यताकेँ बुझि सकब तथा एकर अमुल्य महत्वसँ लाभ लेल जा सकैछ। आदि।

कैलाश कुमार ठाकुर

कैलाश कुमार ठाकुर [Kailash Kumar Thakur] जी आइ लभ मिथिला डट कमके प्रधान सम्पादक छथि। म्यूजिक मैथिली एपके संस्थापक सदस्य सेहो छथि। Kailash Kumar Thakur is Chef Editor of ilovemithila.com email - [email protected], +9779827625706

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