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महाशिवरात्री पावनि धुमधामसँ मना रहल

ओना तँ महादेवाधिदेव महादेवक पूजा-अर्चना भरि साल चलैत रहैछ। मुदा, ‘महाशिवराति पावनि’ मिथिला, भारत, नेपाल लगाइत जाहि देशसभमे हिन्दूसब छथि, ओहि सब देशक खास कऽ हिन्दूसभक लेल ई पावनि बहुत महत्वपूर्ण स्थान राखै छै, तेँ आइ महाशिवराति पावनि धुमधामसँ मनाओल जा रहल अछि।

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आइ उपासकसब एवं जे उपवास नइँ करैत छथि सेहो लोकसब शिव मन्दिर जाऽकऽ ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्रोच्चारण करैत बेलपत्र सङ्गहि दूध, जल आदि चढाए पूजा-अर्चना करैत छथि तथा भरि राति भजन-कीर्तन करैत ई पावनि पुरा करैत छथि। एहि विशेष पावनि दिन शारदा सिन्हा,  रन्जना झा, रजनी पल्लवी, प्रिया मल्लिक, पुनम मिश्र, गुरूदेव कामति, कुञ्ज बिहारी मिश्र लगाइत बहुतो गायक-गायिकासभक शिव नचारी एवं भजन-कीर्तनसब मिथिलाक घर-घरमे एवं मठ-मन्दिरमे गुञ्जयमान होइत रहैत अछि। शारदा सिन्हाद्वारा गाओल गेल – “बाबा लेने चलियौ हमरो अपन नगरी”, ‘आजु नाथ एक वरत महासुख लागत हे‘ जेहन गीतसब तऽ हरेक घर एवं मठ-मन्दिरमे अनिवार्य रूपेँ बजावओले जाइत अछि।

किछु युवा, लोक एवं साधु-संत सब तऽ महाशिवराति दिन गाँजा, भाङ्केँ भगवान शिवके प्रसाद कहि कऽ सेवन करैत छथि। तऽ किछु गोटे ताड़ी, दारू एवं आन पदार्थसभक सेहो सेवन करैत छथि, जे नशा दैत हो। जेकरा महाशिवरातिक नाम पर विकृति रूपेँ देखल जाइ छै।

कोनो समयमे मिथिला ओ भारतीय सभ्यता-संस्कृतिमे वर्ष भरिमे ३६५ टा सँ बेसी पावनि-तिहार मनाओल जाइत छल। अर्थात, सबदिन जीवनके उत्सव रूपेँ जीबाक लेल हरेक दिन कोनो नइँ कोनो पावनि-तिहार प्रकृति, भौगोलिक अवस्थिति एवं विविध कारण एवं समाजक विविध उद्देश्य, खेती-बाड़ी, रोपाइ, बोआइ, कटाइ, विविध प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक घटना सभसँ जुटल रहैत छल। मुदा, वर्तमानमे मानव समाजक जीवन प्रक्रिया दैनिक मजदूरी, जागीर एवं वैश्वीकरण कारणेँ बहुत हद धरि जटिल भेलाक कारणेँ मात्र किछु प्रमुख पावनि-तिहार प्रमुखतासँ मनाओल जाइ छै। ओहि प्रमुख पावनि-तिहारसबमेसँ ‘महाशिवरात्री’ स्वयंमे बहुत विशिष्ट अछि।

■ की छै महाशिवरात्रि ?

‘महाशिवराति’ पावनि देवाधिदेव महादेवके समर्पित कऽ भरिदिन निराहार रहि मन-मस्तिष्क-हृदयमे स्वयंके लेल, अपन परिवारक शुभ-सुख एवं समृद्धिक लेल, समाज, देश, विश्व एवं पुरा मानव समुदाय ओ प्राणी सभक कल्याणक लेल कएल जाइ छै। कतेको ब्रतीसभ चौबीस घण्टा निराहार रहि व्रत पुरा करैत छथि।

महाशिवराति बारेमे सदगुरु जग्गी वासुदेव करैत छथि – महाशिवरात्रिक राति महिनाक सबसँ अन्हार राति होइ छै।
प्रत्येक महाशिवरातिक उत्सव मनाएब एना लगै छै, मानू हमसब अंधकारक उत्सव मना रहल छी। कोनो तर्कशील मनूक्ख अन्हारकेँ नकारैत, प्रकाशकेँ सहज भावेँ स्वीकार करताह। मुदा, ‘शिव’ शब्दक अर्थ इहे अछि, जे नइँ अछि। जे छै, ओ अस्तित्व एवं सृजन छै। जे नइँ छै, वएह शिव छै।

जे नइँ छै, ओकर अर्थ छै, यदि अहाँ अपन आँखि खोलि कऽ आसपास देखब आ यदि अपनेक सूक्ष्म दृष्टि विकसित भेल अछि तऽ अहाँ बहुत रास सृजन देख सकै छी। मुदा, यदि अपनेक दृष्टि मात्र विशाल वस्तुसभ पर जाएत, तऽ अपने देखबै जे विशालतम शून्यहि, अस्तित्वक सभसँ बड़का उपस्थिति अछि। किछु एहन बिन्दु, जेकरा हमसब आकाशगंगा कहैत छी, ओ तऽ देखाइत छै, मुदा, ओ आकाश गंगा जाहि विशाल शून्यता पर अवस्थित अछि, लोक ओहि अन्हारकेँ किछु नइँ मानि उपेक्षा करैत देखल जाइ छै।

एहि अनन्त रूपेँ विस्तृत शुन्यताकेँ शिव कहल जाइ छै। वर्तमानमे, आधुनिक विज्ञान सेहो प्रमाणित कएल जे सबकिछु शून्यहिसँ वर्तमान होइछ एवं शून्यहिमे विलीन। एहि सन्दर्भेँ प्रष्ट अछि, जे सृजन ओ शून्य शिवमे व्याप्त अछि, तेँ तऽ हुनका ‘देवाधिदेव महादेव’ कहल जाइ छै।

■ महाशिवराति किए मनाओल जाइछ ?

हरेक चन्द्र मासक चौदहम दिन वा अमवस्यासँ पूर्वक एक दिन शिवरातिक नामसँ जानल जाइ छै। एक कैलेण्डर वर्षक सभटा शिवरातिमे सँ महाशिवरातिकेँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानल जाइ छै, जे फागुन (फरवरी-मार्च) महिनामे पड़ै छै। एहि राति, ग्रहक उत्तरी गोलार्द्ध एहि तरहेँ अवस्थित होइछ की मनूक्खक भीतरके ऊर्जा प्राकृतिक रूपसँ ऊपर तरफ जाइ छै। ई एकटा एहन दिन अछि, जाहिदिन मनुष्यकेँ ओकर आध्यात्मिक शिखर धरि जएबामे प्रकृतिसँ सहयोग भेटैछ। तेँ एहि महत्वपूर्ण समयक उपयोग करबाक लेल, सनातन हिन्दू परम्परामे, उत्सव रूपेँ मनाओल जाइछ, जे भरि राति चलैत अछि।

भरि राति मनाओल जायबला एहि उत्सवमे एकटा बातक विशेष ध्यान राखल जाइछ जे ऊर्जाक प्राकृतिक प्रवाहके उपर उमड़बाक लेल पूर्ण अवसर भेटै। तेँ ब्रतीसब एवं जानकर लोकसब अपन रीढ़क हड्डी वा शरीरकेँ सीधा रखैत, भरि राति जागल करैत छथि।

■ महाशिवरातिक महत्त्व :

महाशिवराति आध्यात्मिक पथ पर चलबला साधक सभक लेल बड़ महत्वपूर्ण होइ छै। ई पावनि हुनको सभक लेल बड़ महत्वपूर्ण अछि जे पारिवारिक परिस्थितिमे छथि। पारिवारिक लोक महाशिवरातिकेँ शिव विवाहक उत्सवके रूपेँ मनाओल करैत छथि। तऽ दोसर तरफ, सांसारिक महत्वाकांक्षामे मग्न लोक महाशिवरातिकेँ, शिव द्वारा अपन शत्रुसब पर विजय पओने दिनक रूपमे मनबैत छथि। परन्तु, साधकसभ अइदिनमे कैलाश पर्वतसङ्ग एकाकार होएबाक रूपेँ साधना करैत छथि।। कहल जाइ छै जे हजारो वर्ष पूर्व ऋषि-मुनिसभ शिव सदृश साधनामे पर्वत जकाँ स्थिर ओ निश्चल भऽ गेल रहथि।

योग परम्परामे देवाधिदेव शिव कोनो देवता जकाँ नइँ पुजल जाइत छथि, अपितु ओ आदि गुरु मानल जाइत छथि; पहिल गुरु, जिनकासँ ज्ञान प्रस्फुटन भेलै। ध्यानक अनेको सहस्राब्दि पश्चात्, एक दिन ओ पूर्ण रूपेँ अपन अन्तश्चेतनामे स्थिर भऽ गेलथि। वयह दिन महाशिवरातिक छल। तेँ, साधकसभ महाशिवरातिकेँ स्थिरताक राति रूपेँ मनबैत छथि।

■ महाशिवरात्री आध्यात्मिक महत्त्व :

महाशिवरातिक बारेमे प्रचलित कथासभकेँ छोड़ि देल जाय, तऽ यौगिक परम्परामे एहि दिनक विशेष महत्व इहिलेल अति जे आध्यात्मिक साधकसभक लेल बहुत रास सम्भावनासभ उपलब्ध अछि। आइ आधुनिक विज्ञान अनेक चरण पार करैत, ओहि बिन्दु पर आबि गेल अछि, जहिठामसँ ओ प्रमाण दऽ रहल छै जे अहाँ जेकरा जीवन, पदार्थ एवं अस्तित्वके रूपमे जनैत छी, जेकरा अपने ब्रह्माण्ड ओ तारामण्डलके रूपमे जानैत छी; ओ सब केवल एकटा ऊर्जा छै, जे स्वयंके लाखो-करोड़ो रूपेँ प्रकट करैत अछि। ई वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगीक लेल प्रत्यक्ष अनुभवसँ प्रस्फुटित सत्य अछि।

‘योगी’ शब्दसँ तात्पर्य ओहि व्यक्तिसँ अति, जे अस्तित्वक एकात्मकताकेँ जानि लेने छथि। जखन, ‘योग’ कहल जाइ छै तऽ कोनो विशेष अभ्यास वा तन्त्रक बात नइँ कएल जाइ छै। अपितु एहि अनन्त अस्तित्वमे स्वयंकेँ एकात्म रूपेँ देख सकब, योग अछि। महाशिवारातिक रातिमे, मनुष्यके इयह अनुभव करबाक प्राकृतिक अवसर भेटै छै।

कैलाश कुमार ठाकुर

कैलाश कुमार ठाकुर [Kailash Kumar Thakur] जी आइ लभ मिथिला डट कमके प्रधान सम्पादक छथि। म्यूजिक मैथिली एपके संस्थापक सदस्य सेहो छथि। Kailash Kumar Thakur is Chef Editor of ilovemithila.com email - [email protected], +9779827625706

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